प्रधानमंत्री मोदी पहली बार करेंगे गठबंधन सरकार का संचालन

प्रधानमंत्री मोदी पहली बार करेंगे गठबंधन सरकार का संचालन 

गठबंधन सरकार का संचालन उनकी नेतृत्व क्षमता और सबको साथ लेकर चलने के राजनीतिक कौशल की लेगा परीक्षा

नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में नई सरकार के गठन की तैयारी यही बता रही है कि गठबंधन सरकार आकार लेने जा रही है। देश में केंद्रीय स्तर 2009 के बाद पहली बार गठबंधन सरकार बनने जा रही है। चूंकि भाजपा बहुमत के आंकड़े से ज्यादा दूर नहीं है, इसलिए यह उम्मीद की जाती है कि तेलुगु देसम पार्टी, जनता दल-यू, शिवसेना समेत अन्य सहयोगी दलों के साथ उसके लिए सरकार चलाना कहीं अधिक आसान होगा। इसके बाद भी इतना तो है ही कि प्रधानमंत्री मोदी पहली बार गठबंधन सरकार का संचालन करेंगे। हालांकि अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार के तहत कार्य करने के कारण वह ऐसी सरकार के संचालन के तौर-तरीकों से अवगत हैं, लेकिन स्वयं उनके लिए ऐसी सरकार चलाना एक नया अनुभव होगा।गठबंधन सरकार का संचालन उनकी नेतृत्व क्षमता और सबको साथ लेकर चलने के राजनीतिक कौशल की परीक्षा लेगा। इस परीक्षा में उन्हें खरा उतरना चाहिए, क्योंकि उनके पास चुनौतियों के बीच देश की समस्याओं का समाधान करने की एक राजनीतिक दृष्टि है। गठबंधन सरकारों के कुछ सकारात्मक पक्ष होते हैं तो कुछ नकारात्मक पक्ष भी। गठबंधन सरकारों का नेतृत्व करने वाले को घटक दलों से समन्वय के साथ चलना होता है। इसमें समस्या तब आती है, जब घटक दल अनुचित मांगें मनवाने लगते हैं अथवा सौदेबाजी करने की कोशिश करते हैं या फिर अपने संकीर्ण हितों की पूर्ति के लिए दबाव की राजनीति करने लगते हैं। अतीत में नरसिंह राव और अटल बिहारी वाजपेयी ने गठबंधन सरकारों का कुशलता से संचालन भी किया है और आवश्यक सुधारों को भी आगे बढ़ाया है। मनमोहन सिंह ने भी दस वर्ष तक गठबंधन सरकार का संचालन किया है, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि उन्हें किस तरह कई बार सहयोगी दलों के अनुचित दबाव में झुकना पड़ा। इसी के चलते एक बार उन्हें यह कहना पड़ा था कि गठबंधन सरकार की अपनी कुछ मजबूरियां होती हैं। भाजपा और उसके नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के साथ-साथ समाज और देश के हित में यही है कि नई गठबंधन सरकार को सहयोगी दलों के अनुचित राजनीतिक दबाव का सामना न करना पड़े। वैसे तो राजग के प्रमुख घटक जनता दल-यू और तेलुगु देसम पार्टी पहले भी मोदी सरकार के साथ रह चुकी हैं, लेकिन तब भाजपा के पास पूर्ण बहुमत था। आशा की जाती है कि उन खबरों में कोई सच्चाई नहीं होगी, जिनके तहत यह कहा जा रहा है कि सहयोगी दल अमुक-अमुक मांग रख रहे हैं। निःसंदेह यह समझ आता है कि घटक दल अपने राज्य के राजनीतिक एवं आर्थिक हितों की चिंता करें, लेकिन ऐसा करते समय उन्हें राष्ट्रीय हितों को ओझल नहीं करना चाहिए। यह उन्हें भी सुनिश्चित करना चाहिए कि गठबंधन सरकार सुगम तरीके से चले। इसके लिए आवश्यक हो तो राजग के संयोजक की भी नियुक्ति की जानी चाहिए।

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