वसई तालुका में हिंदू श्मशान भूमि का है खस्ता हाल
वसई तालुका में हिंदू श्मशान भूमि का है खस्ता हाल
क्या जीवन भर बुनियादी सुविधाओं से वंचित रहने वाले व्यक्ति को मरने के बाद भी शांति नहीं मिलती..??- मनोज बारोट
वसई : पिछले हफ्ते शुरू हुई भारी बारिश के कारण वसई तालुका में जलमग्न होने से लोगों का जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है.आज तालुका के लगभग 30 लाख नागरिक सत्तारूढ़, नगरपालिका, वन और राजस्व विभागों की मिलीभगत से पीड़ित हैं, लेकिन एक भी मृत व्यक्ति इस दुर्दशा का शिकार होने से नहीं बचा है। प्राप्त जानकारी के मुताबिक नालासोपारा पूर्व के महेश पार्क में रहने वाले एक बुजुर्ग की 25 जुलाई की शाम को मौत हो गई.जब मृतक का शोक संतप्त परिवार दाह संस्कार के लिए तुलिंज श्मशान घाट गया, तो लकड़ी गीली होने के कारण दाह संस्कार संभव नहीं था। इसलिए जब परिजन अचोले और तालुका के अन्य श्मशानों में गए, तो स्थिति वही थी। इसलिए परिवार ने सोचा कि उन्हें एक निजी दुकान से लकड़ी खरीदनी चाहिए और दाह संस्कार करना चाहिए। लेकिन दुर्भाग्य से जलजमाव के कारण निजी लकड़ी की दुकानों से सूखी लकड़ी नहीं मिल सकी. हताश परिवार अपने प्रियजनों के अंतिम संस्कार की चिंता में इधर-उधर भटक रहे थे, आखिरकार नालासोपारा पश्चिम के समेल पाड़ा श्मशान भूमि में सूखी लकड़ियों की जानकारी मिलने के बाद, दुखी परिजन नालासोपारा पश्चिम गए और अगली सुबह उनका अंतिम संस्कार किया। यह वास्तव में तालुका के नागरिकों के लिए बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण मामला है। क्योंकि जब व्यक्ति जीवित था तो शासक और नगर निगम अपने क्षेत्र के नागरिकों को बुनियादी सुविधाएं तो मुहैया नहीं करा सके, लेकिन मरने के बाद भी उन्होंने मृतक और उसके परिवार को त्याग दिया। इस गंभीर मामले को लेकर बीजेपी नेता मनोज बारोट ने कहा कि जब भी कोई नेता या मंत्री तालुका में आता है, तो उसे प्रस्तुति के दौरान बड़ी स्क्रीन पर दिखाने के लिए हिंदू कब्रिस्तान में चिमनी लगाई गई हैं. और लकड़ी, बिजली और गैस दाह संस्कार के पर्यावरणीय प्रभाव की कहानियाँ नागरिकों को बताई जाती हैं।लेकिन, ये बिजली और गैस ग्रिल लगाए तो गए हैं किंतु और उनपर धूल फेंकी जा रही है और बरसात के दिनों में सूखी लकड़ी न मिलने से मृतकों के परिजनों को परेशानी हो रही है. लेकिन नगर निगम प्रशासन इन सब बातों से अंजान नजर आ रहा है. इसलिए बारोट ने मनपा आयुक्त अनिल कुमार पवार से मांग की है कि सभी हिंदू श्मशान घाट जहां दाह संस्कार के लिए बिजली या गैस की जाली लगाई गई है और आज बंद हैं, उन्हें तुरंत चालू किया जाना चाहिए और जिन श्मशानों में ऐसा नहीं है, वहां इस प्रणाली को जल्दी से शुरू करने की योजना बनाई जानी चाहिए जिससे कि कम से कम मृत्यु के बाद शोक मनाने वाले रिश्तेदार अपने प्रियजनों को उचित विदाई तो दे सकें। साथ ही बारोट ने साफ तौर पर कहा है कि जो प्रशासन पर्यावरण और नागरिक सुविधाओं के प्रति उदासीन है, उसे नागरिकों को पर्यावरण या किसी अन्य विषय के बारे में पढ़ाने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है।
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