गरीबी का दंश: तीन दिन पहले दुर्घटना में मरे बनवासी को न कंधा, न कफन, शव को गंगा में बहाया

गरीबी का दंश: तीन दिन पहले दुर्घटना में मरे बनवासी को न कंधा, न कफन, शव को गंगा में बहाया,

अनाथ बच्चों के पास कफन तक के रुपये नहीं थे। चंदा देकर लोगों ने कफन का इंतजाम किया,

भूख से तड़प कर दर दर भटक रहे बदनसीब अनाथ बच्चों को मदद की दरकार,

वाराणासी: मिर्जामुराद (13/02/2021) क्षेत्र के चित्रसेनपुर गाँव के निवासी एक बनवासी को ग़रीबी की ऐसी सजा मिली कि उसके शव को कंधा देने वाला भी कोई नहीं मिला. उसे कफन भी नसीब नहीं हुआ. ऐसे में शव को गंगा नदी में बहाया। रोटी न कपड़ा और न ही सिर छिपाने की जगह। भूखे अनाथ बच्चे शाम को पिता के आने का इंतजार करते भूखे पेट सो गए। पन्नी डालकर रह रहा पिता कुछ कमाकर लाता तो कुछ खाते नहीं तो भूखे ही सो जाते। बदनसीब पिता को कुछ दिन से बीमारी ने घेर लिया तो बच्चों के खाने का कुछ इंतजाम तक नहीं कर सका। कोरोना के चलते भूख पर आंसू बह रहा था कि बीते मंगलवार की शाम बदनसीब बच्चों की किस्मत ने उससे पिता का साया छीन लिया। पिता की दुर्घटना से मौत हो गई तो गरीब अनाथ बच्चों के पास कफन तक के रुपये नहीं थे। चंदा देकर लोगों ने कफन का इंतजाम किया। चक्रपानपुर निवासी इन बच्चों की बदनसीबी सरकारी सिस्टम की पोल खोल रही है। भूमिहीन होने के बाद भी न इनके पास राशन कार्ड है न खाने पीने का इंतजाम। भूखे बच्चों को बस किसी रहमदिल इंसान का इंतजार है। ज्ञात हो कि कछवा रोड पहलवान ढाबा के पास तीन दिन पहले मंगलवार की शाम प्रयागराज की तरफ से वाराणसी की तरफ जा रही तेज़ रफ़्तार अज्ञात वाहन की टक्कर से चित्रसेनपुर निवासी सुक्खू उर्फ़ घासी बनवासी (40) का मौके पर मौत हो गयी थी।

बीएचयू अस्पताल में तीन दिन बाद शुक्रवार शाम को शव का पोस्टमार्टम हुआ.

बनवासी के बच्चों ने अपने पिता के लाश की बहुत की खोजबीन किया जिसका पता नहीं लगने से रेड ब्रिगेड ट्रस्ट के प्रमुख अजय पटेल को जानकारी हुई गुरुवार को उन्होंने बीएचयू ट्रामा सेंटर जाकर पता किया जहां शव नहीं मिला मिर्जामुराद थानाध्यक्ष से मिलकर जानकारी लिया बताया गया कि 108 नम्बर एंबुलेंस ने मंडलीय हास्पीटल कबीर चौरा शव भेजा गया है जहां बनवासी का लावारिस शव दो दिनो से बिना पोस्टमार्टम हुए मुर्दा घर में पड़ा हुआ था। ऐसे में बनवासी के शव का पोस्टमार्टम कराने के बाद अंतिम संस्कार करने वाला भी कोई नसीब नहीं हुआ था.

माडल विकास खंड सेवापुरी के चक्रपानपुर निवासी बनवासी करीब 30 वर्षों से कच्ची झोपड़ी में परिवार समेत रह रहा है। न उसके पास खेत है न कोई अन्य सहारा। मज़दूरी करके परिवार चलाता है। पांच वर्ष पूर्व उसकी पत्नी की उपचार के अभाव में मौत हो गई।तीन बच्चों जिसमें बडी बेटी और दो नाबालिग बेटे को किसी तरह वह पाल पोस रहा। दीवारें गिर गईं, जमीन पर पानी भर जाता तो उसने एक मचान बना रखा। पन्नी डालकर बच्चों को लेकर रात में वहीं पर सोता। दिन में मज़दूरी करके, जो कमा लाता, उसी से बच्चों को खिलाता, लेकिन कुछ दिन से बनवासी भी बीमार हो गया तो मज़दूरी नहीं कर पा रहा था। बच्चे भूख से तड़पते रहे। किसी ने कुछ खिला दिया तो ठीक नहीं तो ऐसे ही दिन-रात कट जाती।

एक पड़ोसी ने बताया कि मंगलवार की रात वह बच्चों के खाने के इंतज़ाम में कछवा रोड गया था और हाइवे किनारे से घर जा रहा था कि तेज़ रफ़्तार वाहन की टक्कर से उसकी मौत हो गई। बुधवार की सुबह बच्चों को जानकारी हुई। इतना पैसा नहीं था कि अनाथ बच्चे शहर जाकर के पिता के शव घर लाकर कफन का इंतजाम कर ले। समाजसेवी अजय पटेल ने शव का पता लगाने के साथ ही पोस्टमार्टम और कुछ रुपये देने पर उससे कफन मँगाकर अंतिम संस्कार का इंतज़ाम किया।धनाभाव में शव को शुक्रवार रात को सामने घाट गंगा नदी में बहा दिया गया. अब कहने को तो सरकार की इतनी योजनाएं चल रही हैं लेकिन सोते सिस्टम को ऐसे परिवार की बदनसीबी नहीं दिख रही। अनाथ बच्चे अब दर दर भटक रहे है। बच्चे भूख से तड़प रहे हैं। पढ़ना लिखाना तो दूर की बात उनके पास खाने तक का इंतजाम नहीं है।

जरूरतमंदों की मदद को सरकार का भी खजाना खुला है। समाजसेवियों की भी कमी नहीं है, लेकिन ऐसे बदनसीब परिवारों तक उनकी नजर नहीं पहुंच रही है। गांव वालों का कहना है कि सरकारी सिस्टम या फिर समाजसेवी कोई मदद कर दें तो कम से कम इन बच्चों का भविष्य तो बन जाए।

एक्शन एड के ज़िला समंयक राजकुमार गुप्ता ने कहा कि आज हम अपनी जिम्मेदारियों से दूर होते जा रहे हैं। अपने सरोकार से भी पीछे हटते जा रहे, जो अच्छी बात नहीं। अनाथ बच्चे दूसरे बच्चों की तरह खेल-कूद तथा पढ़ाई लिखाई में बेहतर हैं, किंतु इन्हें मौका नहीं मिल रहा। इससे उनकी प्रतिभा से हम पूरी तरह परिचित नहीं हो पा रहे। कहा कि हमें इनके प्रति संवेदना रखते हुए इन बच्चों में शिक्षा की रोशनी फैलानी होगी, जिससे वह आत्म-निर्भर बन सकें। ताकि बालश्रम और मानव तस्करी मुक्त समाज की स्थापना हो सके। जल्द ही इन बच्चों को आर्थिक मदद दिलाने के साथ ही इनके पुनर्वास के लिए प्रयास किया जाएगा। इसे लेकर हर किसी को अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी।

रिपोर्ट : राजकुमार गुप्ता

Comments

Popular posts from this blog

वसई-विरार शहर मनपा क्षेत्र में अब शेयर्ड रिक्शा के साथ मीटर्ड रिक्शा भी शुरू किए जाएंगे - वसई की संघर्षशील विधायक स्नेहा दुबे पंडित की मांग स्वीकार

नायगांव क्षेत्र में दो गुटों में जमीनी विवाद को लेकर हुई गोलीबारी, कई लोग घायल

वसई-विरार में लगभग 35 साल से एक क्षत्र शासित बहुजन विकास आघाड़ी का किला हुआ ध्वस्त